केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार में वेबएक्स के माध्यम से मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर व्याख्यान

केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार, संस्कृति मंत्रालय ने दिनांक 31 जुलाई 2024 को हिंदी साहित्य के अग्रणी और यशस्वी अपनी लेखनी से हिंदी साहित्य को सिंचित कर विशाल वृक्ष बनाने वाले रंगभूमि, कर्मभूमि , गोदान और गबन जैसी शतकों कथा एवं उपन्यास का सृजन करने वाले  मुंशी प्रेमचंद जी का 144 वां जन्म शताब्दी कार्यक्रम का आयोजन किया I इस आयोजन के मुख्य अतिथि डॉ मिथिलेश मिश्रा, वरिष्ठ व्याख्याता इलेनॉइस विश्वविद्यालय , यू एस ए तथा वक्ता डॉ वंदना झा, प्रोफेसर, भारतीय भाषा केंद्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली से आमंत्रित थे विशिष्ट अतिथि मुग्धा सिन्हा, संयुक्त सचिव, संस्कृति मंत्रालय थी I

 

कार्यक्रम का प्रारम्भ केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार के भूतल में मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती के उपलक्ष पर दीप प्रज्ज्वलन के साथ उनकी  तस्वीर पर पुष्प माल्यार्पण के साथ प्रारम्भ किया गया तत्पश्चात ग्रंथागार के प्रथम तल पर सभागार में मुख्य अतिथि डॉ मिथिलेश मिश्रा तथा वक्ता डॉ वंदना झा, का निदेशक, श्री अजीत कुमार, केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार, संस्कृति मंत्रालय द्वारा पौधे और शाल से स्वागत किया गया I इसी क्रम में निदेशक, श्री अजीत  कुमार जी का भी पुस्तकालय सूचना अधिकारी, श्री मुनेश सेन जी के द्वारा पौधे और शाल से सम्मान किया गया I विशिष्ट अतिथि मुग्धा सिन्हा, संयुक्त सचिव, संस्कृति मंत्रालय अपनी अत्यंत कार्यालयी व्यस्तता के कारण इस कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो पायी

इस कार्यक्रम का मंच संचालन श्रीमती पूजा शर्मा ,सहायक पुस्तकालय सूचना अधिकारी कर रही थी I उद्घोषिका, पूजा शर्मा ने सभागार में उपस्थित तथा हाइब्रिड माध्यम से जुड़े सभी श्रोताओं को मुख्य अतिथि व वक्ता का संक्षिप्त परिचय दिया तथा शैक्षणिक क्षेत्र में किये जा रहे उनके कार्यों से श्रोताओं को अवगत कराया I  

सर्वप्रथम निदेशक महोदय ने प्रेमचंद जी के विषय में अपने स्वागत उद्बोधन में शब्द पुष्प अर्पित किये I निदेशक महोदय ने अपने विचार साझा करने से पूर्व संयुक्त सचिव , संस्कृति मंत्रालय मुग्धा सिन्हा जी के लिए आभार व्यक्त किया और उनके उपस्थित न होने पर उनकी कार्यालयी व्यस्तता को कारण बताया I लगातार क्रमश: कई सफल कार्यक्रम के लिए उन्होंने पुन: उनका आभार व्यक्त किया और संस्थान के उत्थान के लिए किये गए कार्यों हेतु उनकी प्रशंसा की I तत्पश्चात उन्होंने प्रेमचंदजी के प्रारम्भिक जीवन के विषय में अपने विचार साझा किये उन्होंने बताया की उनका लगाव अपनी दादी से कहीं ज्यादा था I प्रेमचंद जी ने अगर किस्से कहानियों को कलमबद्ध करना प्रारम्भ किया तो कहीं न कहीं दादी की सुनाई हुई कहानियों का भी प्रभाव था I प्रेमचंद के प्रारम्भिक जीवन , विपन्नता पहली पत्नी के निधन के बाद शिवरानी जी के साथ पुनर्विवाह इत्यादि के विषय में संक्षिप्त विवरण श्रोताओं के समक्ष रखें I साथ ही निदेशक ने  प्रेमचंद जी की लेखनी पर ग्रामीण प्रभाव की गहनता को समझाया I उनके द्वारा रचित कई उपन्यास यथा गोदान, गबन ,रंगभूमि के साथ ही उनके द्वारा रचित नाटक जैसे कर्बला और संग्राम के विषय में भी बताया I उन्होंने श्रोताओं से अनुरोध किया कि ग्रंथागार में उपलबद्ध प्रेमचंद की पुस्तकों को अवश्य पढ़े I इसी के साथ उन्होंने सभी को धन्यवाद देते हुए अपने शब्दों को विराम दिया I

डॉ वंदना झा ने ग्रंथागार से प्राप्त आमंत्रण पर अपना हार्दिक आभार व्यक्त किया और इसे हरिकृपा माना I अकबर द्वारा लिखित पंक्तियों दिल मेरा जिससे बहलता कोई ऐसा न मिला I बुत के बन्दे मिले अल्लाह का बंदा न मिला के साथ प्रेमचंद जी के विषय में अपने व्याख्यान को प्रारम्भ किया I बनारस की महान ऐतिहासिक, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि जिसमें बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कालेज में अपने अध्यापन के विषय में बताया तो साथ ही प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, कबीर, रामचंद्र शुक्ल और देवाधिदेव महादेव के लिए स्थापित पौराणिक नगर बनारस के महातम्य से भी  श्रोताओं को अवगत कराया I

 प्रेमचंद जी की लेखनी में भाषा की सरलता, किसानों, स्त्री, साहूकार, पशुओं यहाँ तक की निर्जीव वस्तुओं के मनोभावों को बखूबी कहानियों में उतारने हेतु उनकी प्रशंसा की I उन्होंने श्रोताओं को प्रेमचंद की कहानियो को उनके जन्मशताब्दी के 144 वर्ष बीतने के बाद भी पाठकों में लोकप्रिय होने के अंतर को कालजयी और कालजीवी शब्दों की व्याख्या के अंतर के द्वारा समझाया I प्रसंग के क्रम में उन्होंने गाँधी जी के द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति के आह्वाहन पर प्रेमचंद के द्वारा नौकरी छोड़ने की घटना का भी उल्लेख किया तथा कब और किन परिस्थितियों में प्रेमचंद जी के नाम के साथ मुंशी जुड़ा इसकी रोचक घटना को उन्होंने अपने मधुर और अलंकृत शब्द शैली में  सुनाया I उन्होंने अपने समाप्ति की ओर बढ़ते भाषण के क्रम में विभिन्न समयों में उनके लेखनी पर वामपंथी विचारधारा के प्रभाव को नकारा और उन्हें एक सम्पूर्ण बिना किसी भेद, पक्षपात और धर्मनिरपेक्ष भारत के महान लेखक के रूप उनका प्रशस्ति किया I उन्होंने उनके द्वारा रचित  साहित्य पर लम्बी चर्चा की और प्रेमचंद जी की रचना कुशलता के विविध विधाओं के विषय में श्रोताओं के ज्ञान में अभिवृद्धि की I अंतत: श्रोताओं से उनकी विभिन्न रचनाओं को पढ़ने का आग्रह करने के साथ ही डॉ वंदना झा ने पुन: निदेशक, केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार और सभी को धन्यवाद दिया I

 मुख्य अतिथि डॉ मिथिलेश मिश्रा जी ने अपने व्याख्यान का प्रारम्भ निदेशक, केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार को धन्यवाद देते हुए प्रारम्भ किया I उन्होंने स्वीकार किया कि नियति का निश्चय अर्थात हरि की कृपा ही थी कि आज वो इस सभागार में उपस्थित हैं डॉ मिश्र जी ने अपने साहित्यिक जीवन पर तीन साहित्यकारों  की भूमिका को बड़ी विनम्रता से स्वीकार करते हुए माना कि पंडित सुर्यकांत त्रिपाठी निराला , जय शंकर प्रसाद और प्रेमचंद जी का महत्ववपूर्ण प्रभाव है I डॉ मिथिलेश मिश्रा जी ने भी अपने सहज मृदुल स्वर में प्रेमचंद जी के विभिन्न पक्षों को बताया साथ ही उन्होंने ये भी  बताया कि वो क्या कारण थे जिसके चलते प्रेमचंद जी की रचनाएं कालजयी हुई I उन्होंने प्रेमचंद जी के जीवन में व्याप्त विपन्नता और साहित्य के लिए किये गए प्रयासों के  विभिन्न पक्षों को बताया साथ ही उन्होंने ये भी  बताया कि वो क्या कारण थे जिसके चलते प्रेमचंद जी की रचनाएं कालजयी हुई I उन्होंने अल्पप्राण और महाप्राण की व्याख्या  की, उन्होंने उस तथ्य को बताया जिसके कारण प्रेमचंद जी महाप्राण की श्रेणी में आते हैं Iउन्होंने प्रसंगवश बताया कि प्रेमचंद जी ने मात्र 18 साल की अवधि में 300 कहानियां और 15 उपन्यास लिखें I आर्थिक दयनीय स्तिथि कभी भी उनके साहित्य के मार्ग को अवरुद्ध नहीं कर पायी, टिमटिमाती ढिबरी की रौशनी में उनकी कई कालजयी रचनाओं की उतपत्ति हुई I संवाद के क्रम में उन्होंने श्रोताओं से अनुरोध किया कि आज के इंटरनेट के युग में सोचने और विचार करने की क्षमता का निरंतर ह्रास हो रहा है अतएव अपनी रचनात्मक मौलिकता अवश्य बनाये रखें I इसी क्रम में उन्होंने श्रोताओं को बताया कि किस प्रकार प्रेमचंद सामान्य व्यक्ति से जुड़कर उनकी व्यथाओं को समझकर, तत्कालीन भारतीय समाज में व्याप्त विभिन्न जड़तावादी परम्पराओं का निष्पक्ष और निरपेक्ष वर्णन शब्दों में बिना कटुता लाये लिख डालते थे I

 डॉ मिश्र ने यथार्थ और आदर्शवाद की साहित्यिक परिप्रेक्ष्य में भी व्याख्या की और मानव जीवन में इसके समन्वय और संतुलन को आवश्यक बताया I इसी  के साथ उन्होंने अपने व्यख्यान को विराम दिया और श्रोताओं को धन्यवाद दिया I

 कार्यक्रम के अंत में पुस्तकालय सूचना अधिकारी श्री वाई ए राव जी के द्वारा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ मिथिलेश मिश्रा एवं वक्ता डॉ वंदना झा को कार्यक्रम में प्रेमचंद जी के विषय में विचार साझा करने के लिए धन्यवाद दिया साथ ही उन्होंने  विशिष्ट अतिथि मुग्धा सिन्हा, संयुक्त सचिव, संस्कृति मंत्रालय एवं निदेशक, श्री अजीत कुमार जी को पाठकों के हित में  निरंतर हो रहे  कार्यक्रम के लिए भी साधुवाद किया I