डॉ. एस.आर.रंगनाथन की जयंती और नेशनल लाइब्रेरियन डे पर दिया गया व्याख्यान

केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार में पुस्तकालयध्यक्ष दिवस का आयोजन

दिनांक 12 अगस्त 2024 को केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार में पुस्तकालयध्यक्ष दिवस का आयोजन किया गया, जो कि पद्मश्री डॉ. एस. आर. रंगनाथन के 132वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था। डॉ. एस. आर. रंगनाथन, जिन्हें  भारत के पुस्तकालय विज्ञान के जनक के रूप में भी जाना जाता है, उनके सम्मान में यह दिन समर्पित किया गया। इस अवसर पर, पुस्तकालय विज्ञान के क्षेत्र में उनकी अमूल्य देन और उनके सिद्धांतों की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला गया।

कार्यक्रम का संचालन श्री विनय प्रभाकर मिश्रा, पुस्तकालय सूचना सहायक, ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. अजीत कुमार, निदेशक, केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार, द्वारा मुख्य अतिथि श्री किशोर मकवाणा, अध्यक्ष राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, भारत सरकार, और मुख्य वक्ता डॉ. राजेश सिंह, यूनिवर्सिटी लाइब्रेरियन, दिल्ली विश्वविद्यालय, का शॉल और पौधा देकर स्वागत करने से हुई। इसके बाद, श्री मुनेश सेन, पुस्तकालय सूचना अधिकारी, ने डॉ. अजीत कुमार का स्वागत किया. 

स्वागत भषण :

कार्यक्रम के प्रारंभ में, डॉ. अजीत कुमार, निदेशक, केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार, ने अपने स्वागत भाषण में डॉ. एस. आर. रंगनाथन के जीवन, संघर्ष, और उनके अद्वितीय योगदान पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने डॉ. रंगनाथन के जीवन को एक प्रेरणादायक यात्रा के रूप में प्रस्तुत किया, जो न केवल पुस्तकालय विज्ञान के क्षेत्र में, बल्कि शिक्षा और ज्ञान की दुनिया में भी एक आदर्श के रूप में देखा जाता है। डॉ. अजीत कुमार ने अपने संबोधन में इस बात पर जोर दिया कि डॉ. एस. आर. रंगनाथन का जीवन केवल एक साधारण शिक्षक का नहीं था, बल्कि वह एक गणित के अध्यापक से पुस्तकालय विज्ञान के महान विद्वान बनने की अविस्मरणीय यात्रा थी। उन्होंने बताया कि किस प्रकार रंगनाथन ने अपनी गणितीय दृष्टि और तर्कशक्ति का उपयोग करते हुए पुस्तकालय विज्ञान में नए सिद्धांतों और प्रणालियों का विकास किया। उन्होंने विशेष रूप से उस समय की चर्चा की जब रंगनाथन ने अपनी गणितीय प्रतिभा के बावजूद पुस्तकालय विज्ञान को अपना करियर चुना, जो उस समय एक अज्ञात और अल्पविकसित क्षेत्र था।

डॉ. अजीत कुमार ने इस बात पर भी जोर दिया कि कैसे पुस्तकालयों को डिजिटल युग में खुद को पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता है, ताकि वे उपयोगकर्ताओं की बदलती आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। उन्होंने बताया कि पुस्तकालय विज्ञान के पेशेवरों को न केवल पुस्तकालय की भौतिक संरचना पर ध्यान देना चाहिए, बल्कि डिजिटल संसाधनों, ऑनलाइन सेवाओं, और ई-लर्निंग को भी अपने कार्यक्षेत्र में शामिल करना चाहिए।

मुख्य वक्ता का संबोधन:

डॉ. राजेश सिंह ने अपने भाषण की शुरुआत डॉ. एस. आर. रंगनाथन के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं से की। उन्होंने बताया कि किस प्रकार एक गणित के अध्यापक से वे पुस्तकालय विज्ञान के क्षेत्र में आए और इस क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए। डॉ. सिंह ने रंगनाथन की पुस्तकालयाध्यक्ष बनने की यात्रा को एक प्रेरणादायक कथा के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने संघर्षों, चुनौतियों, और उनके द्वारा किए गए नवाचारों का जिक्र किया।

डॉ. सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि डॉ. रंगनाथन एक आदर्श पुस्तकालयाध्यक्ष थे, जिन्होंने अपने कार्य को महज एक नौकरी नहीं, बल्कि एक मिशन के रूप में देखा। उनकी दृष्टि और समर्पण ने उन्हें पुस्तकालय विज्ञान के क्षेत्र में एक प्रकाशस्तंभ बना दिया। उन्होंने बताया कि डॉ. रंगनाथन ने जिस लगन और प्रतिबद्धता से काम किया, वह सभी पुस्तकालयाध्यक्षों के लिए अनुकरणीय है।

डॉ. सिंह ने डॉ. रंगनाथन द्वारा दिए गए पुस्तकालय विज्ञान के पांच सिद्धांतों Five Laws of Library Science पर भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि ये पांच सिद्धांत -

  1. पुस्तकें उपयोग के लिए होती हैं,
  2. हर पाठक के लिए पुस्तक,
  3. हर पुस्तक के लिए पाठक,
  4. पुस्तकालय एक बढ़ता हुआ जीव है,
  5. पुस्तकालय का समय और उपयोगकर्ता का समय बचाना,

आज भी पुस्तकालय विज्ञान के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि ये सिद्धांत न केवल पुस्तकालय सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करते हैं, बल्कि पाठकों की आवश्यकताओं को भी प्राथमिकता देते हैं।

मुख्य अतिथि का संबोधन:

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, श्री किशोर मकवाणा, जो कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष हैं, ने अपने संबोधन में डॉ. एस. आर. रंगनाथन के प्रति गहरा सम्मान व्यक्त किया। उन्होंने डॉ. रंगनाथन के योगदान को न केवल पुस्तकालय विज्ञान के क्षेत्र में, बल्कि समाज में व्यापक बदलाव के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण बताया। श्री मकवाणा ने कहा कि डॉ. रंगनाथन का कार्य केवल पुस्तकालयों तक सीमित नहीं था उन्होंने एक ऐसे समाज की परिकल्पना की थी जिसमें ज्ञान तक पहुंच सबके लिए समान रूप से हो।

श्री मकवाणा ने अपने वक्तव्य में पुस्तकालयों को समाज का दर्पण बताते हुए कहा कि ये स्थान केवल पुस्तकों के भंडार नहीं हैं, बल्कि ज्ञान के स्रोत हैं जो समाज को प्रगति की दिशा में अग्रसर करते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि समाज में समरसता और समानता की स्थापना के लिए यह आवश्यक है कि सभी वर्गों के लोगों की पुस्तकालयों तक पहुंच हो। उन्होंने बताया कि ज्ञान का प्रसार केवल पुस्तकालयों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे समाज के हर कोने तक पहुँचाया जाना चाहिए।

 कार्यक्रम का समापन:

कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. वाई. ए. राव, पुस्तकालय सूचना अधिकारी, द्वारा किया गया। उन्होंने मुख्य अतिथि श्री किशोर मकवाणा और डॉ. राजेश सिंह को अपने बहुमूल्य समय निकालकर कार्यक्रम में उपस्थित होने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने श्रीमती मुग्धा सिन्हा, संयुक्त सचिव, भारत सरकार, को उनके अनवरत सहयोग के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया और केंद्रीय सचिवालय ग्रंथागार के समस्त कर्मचारियों को कार्यक्रम की सफलता के लिए बधाई दी। अंत में, उन्होंने सभा में उपस्थित, ऑनलाइन माध्यम से जुड़े और फेसबुक लाइव के माध्यम से जुड़े सभी श्रोताओं का भी आभार व्यक्त किया।

यह आयोजन न केवल डॉ. एस. आर. रंगनाथन के योगदान को सम्मानित करने के लिए था, बल्कि पुस्तकालय विज्ञान के क्षेत्र में नवाचार और प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए भी प्रेरणादायक सिद्ध हुआ। इस आयोजन ने पुस्तकालय विज्ञान के महत्व को पुनः परिभाषित किया और इस क्षेत्र के प्रोफेशनल्स को नए युग की चुनौतियों के प्रति संवेदनशील और जागरूक रहने की दिशा में प्रेरित किया।